Thursday 15 October 2020

गुरु जी का आशीर्वाद।

 

जय हो गुुरु जी,गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।

गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।

    ।। हिन्दी मे इसके अर्थ ।।
कबीर दास जि कहते है – हे सांसारिक प्राणीयों। बिना गुरु के ज्ञान का मिलना असंभव है। तब टतक मनुष्य अज्ञान रुपी अंधकार मे भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनो मे जकडा राहता है जब तक कि गुरु कि कृपा नहीं प्राप्तहोती।
मोक्ष रुपी मार्ग दिखलाने वाले गुरु हैं। बिना गुरु के सत्य एवम् असत्य का ज्ञान नही होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा ? अतः गुरु कि शरण मे जाओ। गुरु ही सच्ची रह दिखाएंगे।








Saturday 12 September 2020

हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई का नारा लगाने वाले सेक्युलर हिन्दुओ जरा आँखें खोल कर पढ़ें। आसमानी किताब में क्या लिखा है।

 हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई का नारा लगाने वाले सेक्युलर हिन्दुओ जरा आँखें खोल कर पढ़ें। आसमानी किताब में क्या लिखा है।

गूगल प्ले स्टोर से 10mb का app हिन्दी कुरान डाउनलोड करे, वहाँ से आप सभी आयतो को मिला सकते है।

1- ”फिर, जब पवित्र महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको’ (मूर्तिपूजको ) को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। ( कुरान मजीद, सूरा 9, आयत 5) (कुरान 9:5) . http://www.quran.com/9/5 http://www.quranhindi.com/p260.htm
2- ”हे ‘ईमान’ लाने वालो (केवल एक आल्ला को मानने वालो ) ‘मुश्रिक’ (मूर्तिपूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।” (कुरान सूरा 9, आयत 28) . http://www.quran.com/9/28 http://www.quranhindi.com/p265.htm
3- ”निःसंदेह ‘काफिर (गैर-मुस्लिम) तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।” (कुरान सूरा 4, आयत 101) . http://www.quran.com/4/101 http://www.quranhindi.com/p130.htm
4- ”हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों’ (गैर-मुस्लिमो) से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।” (कुरान सूरा 9, आयत 123) . http://www.quran.com/9/123 http://www.quranhindi.com/p286.htm
5- ”जिन लोगों ने हमारी ”आयतों” का इन्कार किया (इस्लाम व कुरान को मानने से इंकार) , उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं” (कुरान सूरा 4, आयत 56) http://www.quran.com/4/56 http://www.quranhindi.com/p119.htm
6- ”हे ‘ईमान’ लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा ‘कुफ्र’ (इस्लाम को धोखा) को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे” (कुरान सूरा 9, आयत 23) . http://www.quran.com/9/23 . . http://www.quranhindi.com/p263.htm .
7- ”अल्लाह ‘काफिर’ लोगों को मार्ग नहीं दिखाता” (कुरान सूरा 9, आयत 37) . http://www.quran.com/9/37 . . http://www.quranhindi.com/p267.htm .
8- ” ऐ ईमान (अल्ला पर यकिन) लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हँसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। और अल्लाह का डर रखों यदि तुम ईमानवाले हो (कुरान सूरा 5, आयत 57) . http://www.quran.com/5/57 http://www.quranhindi.com/p161.htm
9- ”फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।” (कुरान सूरा 33, आयत 61) . http://www.quran.com/33/61 http://www.quranhindi.com/p592.htm
10- ”(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम’ का ईधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।” ( कुरान सूरा 21, आयत 98 . http://www.quran.com/21/98 http://www.quranhindi.com/p459.htm
11- ‘और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब’ की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।” (कुरान सूरा 32, आयत 22) . http://www.quran.com/32/22 http://www.quranhindi.com/p579.htm
12- ‘अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ‘गनीमतों’ का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,”(लूट का माल) (कुरान सूरा 48, आयत 20) . http://www.quran.com/48/20 . . http://www.quranhindi.com/p713.htm
13- ”तो जो कुछ गनीमत (लूट का माल जैसे लूटा हुआ धन या औरते) तुमने हासिल किया है उसे हलाल (valid) व पाक समझ कर खाओ (उपयोग करो)’ (कुरान सूरा 8, आयत 69) . http://www.quran.com/8/69 http://www.quranhindi.com/p257.htm
14- ”हे नबी! ‘काफिरों’ और ‘मुनाफिकों’ के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम’ है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे” (कुरान सूरा 66, आयत 9) . http://www.quran.com/66/9 http://www.quranhindi.com/p785.htm
15- ‘तो अवश्य हम ‘कुफ्र’ (इस्लाम को धोखा देने वालो) करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।” (कुरान सूरा 41, आयत 27) . http://www.quran.com/41/27 http://www.quranhindi.com/p662.htm

16,       एक मुस्लिम भाई ने बोला जा कर पहले उर्दू पढ़ वो क्या जनता था बेचारा मेने उसको छोटा सा प्रमाण दिया कुरान में से ही सूरा no2 आयत no 223 में साफ लिखा है,*✨✨


نِسَاۗؤُكُمْ : عورتیں تمہاری / औरते तुम्हारी

حَرْثٌ : کھیتی / खेती है

لَّكُمْ : تمہاری / तुम्हारे लिए

فَاْتُوْا : سو تم آؤ / तो तुम आओ

حَرْثَكُمْ : اپنی کھیتی / अपनी खेती में

اَنّٰى : جہاں سے / जिस तरह

شِئْتُمْ : تم چاہو / तुम चाहो

وَقَدِّمُوْا : اور آگے بھیجو / औऱ आगे भेजो

لِاَنْفُسِكُمْ : اپنے لیے / अपने लिए

وَاتَّقُوا : اور دوڑو / और नाफरमानी से बचो

اللّٰهَ : اللہ / अल्लाह की

وَاعْلَمُوْٓا : اور تم جان لو / और तुम जान लो

اَنَّكُمْ : کہ تم / की तुम

مُّلٰقُوْهُ : ملنے والے اس سے / मुलाक़ात करने वाले हो उस से

وَبَشِّرِ : اور خوشخبری دیں / और खुशखबरी दीजिये

الْمُؤْمِنِيْنَ : ایمان والے / ईमान वालो को


ترجمہ :- *تمہاری عورتیں تمہاری کھیتیاں ہیں تمہیں اختیار ہے، جس طرح چاہو، اپنی کھیتی میں جاؤ، مگر اپنے مستقبل کی فکر کرو اور اللہ کی ناراضی سے بچو خوب جان لو کہ تمہیں ایک دن اُس سے ملنا ہے اور اے نبیؐ! جو تمہاری ہدایات کو مان لیں انہیں فلاح و سعادت کا مثردہ سنا دو۔*


तर्जुमा :- *(अल्लाह पर यक़ीन करने वालो) औरते तुम्हारी खेतिया हैं, लिहाजा जिधर से तुम चाहो अपनी खेती में आओ,और अपने लिए (नेक / भले काम) आगे भेजो, और अल्लाह की नाफ़रमानी से बचो, और ध्यान रखो कि तुम्हे (एक दिन) उससे ज़रूर मिलना है, और (मुहम्मद S.A.W. आप) ईमान वालो को खुशखबरी सुना दीजिए।*                

 

सवाल यह उठता है की जिस मजहब के धर्म-ग्रन्थ मे यह सब लिखा हो उस धर्म के लोग गंगा जमुनी तहजीब व् भाईचारे की बात किस मुँह से करते है?

Friday 31 July 2020

💐अनमोल ज्ञान की बाते,अब नही सीखा तो कभी नही सिख पाओगे।💐

महाभारत  को पढ़ने, समझने, व  सीखने के लिए समय और इच्छा न हो तो भी इसका नव सार सूत्र सबके जीवन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है :-

1  संतानों की गलत माँग और हठ पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया, तो अंत में आप असहाय हो जायेंगे = कौरव

2   आप भले ही कितने बलवान हो लेकिन  अधर्म के साथ हो तो आपकी विद्या अस्त्र शस्त्र शक्ति और वरदान सब निष्फल हो जायेगा =  कर्ण

3    संतानों को इतना महत्वाकांक्षी मत बना दो कि विद्या का दुरुपयोग कर स्वयंनाश कर सर्वनाश को आमंत्रित करे =  अश्वत्थामा

4 कभी किसी को ऐसा वचन मत दो  कि आपको अधर्मियों के आगे समर्पण करना पड़े  = भीष्म पितामह

5   संपत्ति, शक्ति व सत्ता का दुरुपयोग और दुराचारियों का साथ अंत में स्वयंनाश का दर्शन कराता है =  दुर्योधन

 6  अंध व्यक्ति- अर्थात मुद्रा, मदिरा, अज्ञान, मोह और काम ( मृदुला) अंध व्यक्ति के हाथ में सत्ता  भी विनाश की ओर ले जाती है  = धृतराष्ट्र

7   व्यक्ति के पास विद्या  विवेक से बँधी  हो तो विजय अवश्य मिलती है =अर्जुन

8  हर कार्य में छल, कपट, व  प्रपंच रच कर आप हमेशा सफल नहीं हो सकते = शकुनि

9    यदि आप नीति,  धर्म, व कर्म का सफलता पूर्वक पालन करेंगे तो विश्व की कोई भी शक्ति आपको पराजित नहीं कर सकती = युधिष्ठिर

रीति, नीति, विद्या, विनय, ये द्वार सुमति के चार ।
इनको पाता है वही, जिसका हृदय  रहे उदार ।।
यदि इन  सूत्रों से सबक ले पाना सम्भव नहीं होता है तो महाभारत संभव हो जाता है।
*जय श्री कृष्ण*

Monday 20 July 2020

🌇ब्राह्मणों की वंशावली🌇

                          
🌇ब्राह्मणों की वंशावली🌇
भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई। ब्रम्हा की आज्ञा से
दोनों कुरुक्षेत्र वासनी
सरस्वती नदी के तट
पर गये और कण् व चतुर्वेदमय
सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे
एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें
वरदान दिया ।
वर के प्रभाव कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका
क्रमानुसार नाम था -
उपाध्याय,
दीक्षित,
पाठक,
शुक्ला,
मिश्रा,
अग्निहोत्री,
दुबे,
तिवारी,
पाण्डेय,
और
चतुर्वेदी ।
इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने
अपनी कन्याए प्रदान की।
वे क्रमशः
उपाध्यायी,
दीक्षिता,
पाठकी,
शुक्लिका,
मिश्राणी,
अग्निहोत्रिधी,
द्विवेदिनी,
तिवेदिनी
पाण्ड्यायनी,
और
चतुर्वेदिनी कहलायीं।
फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं
वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम -
कष्यप,
भरद्वाज,
विश्वामित्र,
गौतम,
जमदग्रि,
वसिष्ठ,
वत्स,
गौतम,
पराशर,
गर्ग,
अत्रि,
भृगडत्र,
अंगिरा,
श्रंगी,
कात्याय,
और
याज्ञवल्क्य।
इन नामो से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं।
मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं-
(1) तैलंगा,
(2) महार्राष्ट्रा,
(3) गुर्जर,
(4) द्रविड,
(5) कर्णटिका,
यह पांच "द्रविण" कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाये जाते हैं|
तथा
विंध्यांचल के उत्तर में पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण
(1) सारस्वत,
(2) कान्यकुब्ज,
(3) गौड़,
(4) मैथिल,
(5) उत्कलये,
उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं।
वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है।
ऐसी संख्या मुख्य 115 की है।
शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है ।
यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं।
जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं,
फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के
लगभग है |
तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है।
उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है
81 ब्राम्हाणां की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या, मुख्य है -
(1) गौड़ ब्राम्हण,
(2)गुजरगौड़ ब्राम्हण (मारवाड,मालवा)
(3) श्री गौड़ ब्राम्हण,
(4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण,
(5) हरियाणा गौड़ ब्राम्हण,
(6) वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण,
(7) शोरथ गौड ब्राम्हण,
(8) दालभ्य गौड़ ब्राम्हण,
(9) सुखसेन गौड़ ब्राम्हण,
(10) भटनागर गौड़ ब्राम्हण,
(11) सूरजध्वज गौड ब्राम्हण(षोभर),
(12) मथुरा के चौबे ब्राम्हण,
(13) वाल्मीकि ब्राम्हण,
(14) रायकवाल ब्राम्हण,
(15) गोमित्र ब्राम्हण,
(16) दायमा ब्राम्हण,
(17) सारस्वत ब्राम्हण,
(18) मैथल ब्राम्हण,
(19) कान्यकुब्ज ब्राम्हण,
(20) उत्कल ब्राम्हण,
(21) सरयुपारी ब्राम्हण,
(22) पराशर ब्राम्हण,
(23) सनोडिया या सनाड्य,
(24)मित्र गौड़ ब्राम्हण,
(25) कपिल ब्राम्हण,
(26) तलाजिये ब्राम्हण,
(27) खेटुवे ब्राम्हण,
(28) नारदी ब्राम्हण,
(29) चन्द्रसर ब्राम्हण,
(30)वलादरे ब्राम्हण,
(31) गयावाल ब्राम्हण,
(32) ओडये ब्राम्हण,
(33) आभीर ब्राम्हण,
(34) पल्लीवास ब्राम्हण,
(35) लेटवास ब्राम्हण,
(36) सोमपुरा ब्राम्हण,
(37) काबोद सिद्धि ब्राम्हण,
(38) नदोर्या ब्राम्हण,
(39) भारती ब्राम्हण,
(40) पुश्करर्णी ब्राम्हण,
(41) गरुड़ गलिया ब्राम्हण,
(42) भार्गव ब्राम्हण,
(43) नार्मदीय ब्राम्हण,
(44) नन्दवाण ब्राम्हण,
(45) मैत्रयणी ब्राम्हण,
(46) अभिल्ल ब्राम्हण,
(47) मध्यान्दिनीय ब्राम्हण,
(48) टोलक ब्राम्हण,
(49) श्रीमाली ब्राम्हण,
(50) पोरवाल बनिये ब्राम्हण,
(51) श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण
(52) तांगड़ ब्राम्हण,
(53) सिंध ब्राम्हण,
(54) त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण,
(55) इग्यर्शण ब्राम्हण,
(56) धनोजा म्होड ब्राम्हण,
(57) गौभुज ब्राम्हण,
(58) अट्टालजर ब्राम्हण,
(59) मधुकर ब्राम्हण,
(60) मंडलपुरवासी ब्राम्हण,
(61) खड़ायते ब्राम्हण,
(62) बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(63) भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(64) लाढवनिये ब्राम्हण,
(65) झारोला ब्राम्हण,
(66) अंतरदेवी ब्राम्हण,
(67) गालव ब्राम्हण,
(68) गिरनारे ब्राम्हण
सभी ब्राह्मण बंधुओ को मेरा नमस्कार बहुत दुर्लभ जानकारी है जरूर पढ़े। और समाज में शेयर करे हम क्या है
इस तरह ब्राह्मणों की उत्पत्ति और इतिहास के साथ इनका विस्तार अलग अलग राज्यो में हुआ और ये उस राज्य के ब्राह्मण कहलाये।
ब्राह्मण बिना धरती की कल्पना ही नहीं की जा सकती इसलिए ब्राह्मण होने पर गर्व करो और अपने कर्म और धर्म का पालन कर सनातन संस्कृति की रक्षा करें।

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नोट:आप सभी बंधुओं से अनुरोध है कि सभी ब्राह्मणों को भेजें और यथासम्भव अपनी वंशावली का प्रसार करने में सहयोग करें।

Friday 3 April 2020

नागार्जुन का अनमोल शास्त्र रस रत्नाकर के बारे मे महत्वपूर्ण बातें।

नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया । रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की । जिनमें " रस रत्नाकर " और " रसेन्द्र मंगल " बहुत प्रसिद्ध हैं । रसायन शास्त्री व धातुकर्मी होने के साथ साथ इन्होंने अपनी चिकित्सकीय ‍सूझबूझ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार की । चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें " कक्षपुटतंत्र " " आरोग्य मंजरी " " योगसार " और " योगाष्टक " हैं ।
रस रत्नाकर ग्रंथ में मुख्य रस माने गए निम्न रसायनों का उल्लेख किया गया है ।
1 महा रस 2  उप रस 3  सामान्य रस 4  रत्न 5  धातु 6  विष 7 क्षार 8 अम्ल 9 लवण 10 भस्म ।
महा रस इतने है -
1 अभ्रं 2 वैक्रान्त 3  भाषिक 4 विमला 5  शिलाजतु 6 सास्यक 7 चपला 8 रसक
उप रस -
1 गंधक 2 गैरिक 3 काशिस 4 सुवरि 5 लालक 6 मन:शिला 7 अंजन 8 कंकुष्ठ
सामान्य रस -
1 कोयिला 2 गौरी पाषाण 3 नवसार 4 वराटक 5 अग्निजार 6 लाजवर्त 7 गिरि सिंदूर 8 हिंगुल 9  मुर्दाड श्रंगकम्‌
इसी प्रकार 10 से अधिक विष हैं । रस रत्नाकर अध्याय 9 में रसशाला यानी प्रयोगशाला का विस्तार से वर्णन भी

है । इसमें 32 से अधिक यंत्रों का उपयोग किया जाता था । जिनमें मुख्य हैं - 1 दोल यंत्र 2 स्वेदनी यंत्र 3 पाटन यंत्र 4 अधस्पदन यंत्र  5 ढेकी यंत्र 6 बालुक यंत्र 7 तिर्यक्‌ पाटन यंत्र 8 विद्याधर यंत्र 9 धूप यंत्र 10 कोष्ठि यंत्र 11 कच्छप यंत्र 12 डमरू यंत्र ।
प्रयोगशाला में नागार्जुन ने पारे पर बहुत प्रयोग किए । विस्तार से उन्होंने पारे को शुद्ध करना । और उसके औषधीय प्रयोग की विधियां बताई हैं । अपने ग्रंथों में नागार्जुन ने विभिन्न धातुओं का मिश्रण तैयार करने । पारा तथा अन्य धातुओं का शोधन करने । महा रसों का शोधन । तथा विभिन्न धातुओं को स्वर्ण या रजत में परिवर्तित करने की विधि दी है ।
पारे के प्रयोग से न केवल धातु परिवर्तन किया जाता था । अपितु शरीर को निरोगी बनाने और दीर्घायुष्य के लिए उसका प्रयोग होता था । भारत में पारद आश्रित रस विद्या अपने पूर्ण विकसित रूप में स्त्री  पुरुष प्रतीकवाद से जुड़ी है । पारे को शिव तत्व तथा गन्धक को पार्वती तत्व माना गया । और इन दोनों के हिंगुल के साथ जुड़ने पर जो द्रव्य उत्पन्न हुआ । उसे रस सिन्दूर कहा गया । जो आयुष्य वर्धक सार के रूप में माना गया ।
पारे की रूपान्तरण प्रक्रिया - इन ग्रंथों से यह भी ज्ञात होता है कि रस शास्त्री धातुओं और खनिजों के हानिकारक गुणों को दूर कर । उनका आन्तरिक उपयोग करने हेतु । तथा उन्हें पूर्णत: योग्य बनाने हेतु विविध शुद्धिकरण की प्रक्रियाएं करते थे । उसमें पारे को 18 संस्कार यानी शुद्धिकरण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था । इन प्रक्रियाओं

में औषधि गुण युक्त वनस्पतियों के रस और काषाय के साथ पारे का घर्षण करना । और गन्धक, अभ्रक तथा कुछ क्षार पदार्थों के साथ पारे का संयोजन करना प्रमुख है । रसवादी यह मानते हैं कि क्रमश: 17 शुद्धिकरण प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद पारे में रूपान्तरण ( स्वर्ण या रजत के रूप में ) की सभी शक्तियों का परीक्षण करना चाहिए । यदि परीक्षण में ठीक निकले । तो उसको  18वीं शुद्धिकरण की प्रक्रिया में लगाना चाहिए । इसके द्वारा पारे में काया कल्प की योग्यता आ जाती है ।
नागार्जुन कहते हैं -
क्रमेण कृत्वाम्बुधरेण रंजित: । करोति शुल्वं त्रिपुटेन काञ्चनम । 
सुवर्ण रजतं ताम्रं तीक्ष्णवंग भुजङ्गमा:। लोहकं षडि्वधं तच्च यथापूर्व तदक्षयम । रस रत्नाकार  3-7-89-10 
अर्थात - धातुओं के अक्षय रहने का क्रम निम्न प्रकार से है - सुवर्ण, चांदी, ताम्र, वंग, सीसा, तथा लोहा । इसमें सोना सबसे ज्यादा अक्षय है ।
नागार्जुन के रस रत्नाकर में अयस्क सिनाबार से पारद को प्राप्त करने की आसवन ( डिस्टीलेशन ) विधि । रजत के धातु कर्म का वर्णन । तथा वनस्पतियों से कई प्रकार के अम्ल और क्षार की प्राप्ति की भी विधियां वर्णित हैं ।
इसके अतिरिक्त रस रत्नाकर में रस ( पारे के योगिक ) बनाने के प्रयोग दिए गये हैं । इसमें देश में धातु कर्म और कीमियागरी के स्तर का सर्वेक्षण भी दिया गया था । इस पुस्तक में चांदी, सोना, टिन और तांबे की कच्ची धातु निकालने । और उसे शुद्ध करने के तरीके भी बताये गए हैं ।

पारे से संजीवनी और अन्य पदार्थ बनाने के लिए नागार्जुन ने पशुओं और वनस्पति तत्वों और अम्ल और खनिजों का भी इस्तेमाल किया । हीरे, धातु और मोती घोलने के लिए उन्होंने वनस्पति से बने तेजाबों का सुझाव दिया । उसमें खट्टा दलिया, पौधे और फलों के रस से तेजाब Acid  बनाने का वर्णन है ।
नागार्जुन ने सुश्रुत संहिता के पूरक के रूप में उत्तर तन्त्र नामक पुस्तक भी लिखी । इसमें दवाइयां बनाने के तरीके दिये गये हैं । आयुर्वेद की 1 पुस्तक " आरोग्यमजरी " भी लिखीनालंदा यूनिवर्सिटी को जिस समय बख्तियार खिलजी द्वारा जलाकर बर्बाद किया जा रहा था। ठीक उससे कुछ दिनों पहले तत्कालीन वीसी नागार्जुन की रस रत्नाकर बुक लिखी जा चुकी थी। इस बुक की खासियत थी कि यह आयुर्वेद के ऊपर रस शास्त्र की कई रिसर्च को अपने में समेटे हुए थी। नालंदा यूनिवर्सिटी की हजारों पुस्तकें तो जल गयी लेकिन रस रत्नाकर बच गया। और वो आज भी मौजूद है। नागार्जुन के रस रत्नाकर को संस्कृत भाषा में साढ़े तीन सौ साल पहले अनुवाद किया गया था। जो दुर्लभ पांडुलिपि के रूप में आज भी पटना में मौजूद है। दुर्लभ पांडुलिपि का कलेक्शन करने वाली पूनम पांडेय ने बताया कि यह अपने आप में ऐतिहासिक है। और पांडुलिपि के जानकार और उसके संरक्षण के लिए काम कर रहे गवर्मेंट एजेंसी ने भी इसे काफी दुर्लभ माना है। हजारों पेज की लिखी रस रत्नाकर में नालंदा से जुड़ी कई चीजों का भी उल्लेख है। ज्ञात हो कि एक बार फिर से नालंदा यूनिवर्सिटी शुरू हो गया है। और इसमें पहले सेशन में पंद्रह स्टूडेंट्स ने एडमिशन भी ले लिया है। ऐसे में नागार्जुन की रस रत्नाकर नालंदा और उससे जुड़े इतिहास को जानने और समझने में काफी मददगार साबित होगा। क्भ्ख् पेज के इस रस रत्नाकर में रसायनशास्त्र की कई जानकारी मौजूद है। यह बुक व‌र्ल्ड की सबसे बड़ी लाइब्रेरी में रहने का भी सौभाग्य पाने वाली बुक में से एक है।
नागार्जुन के बाद अम‌र्त्य सेन

Thursday 12 March 2020

संस्कृत के महान 24 विद्वानो के नाम देखे पढ़े।

            जय हिंद जय भारत, भारत देश की पॉवन भूमि पर वैसे तो बहुत महापुरुषों ने जन्म लिया है,परन्तु आज की दुनिया मे चर्चित विद्वान ये है।
💐👍1*श्री भास्कराचार्य जी (2* आर्यभट्ट जी (3*श्री आदिशंकराचार्य जी(4*पं Chanikaya जी(5*नागार्जुन जी(6*महर्षि कणाद जी(*7बौधायन जी(*8महर्षि शुश्रुत जी(9*आचार्य चरक जी(*10 आचार्य पंताजली जी/                    (* 11 श्री बारामेय  जी(*12 महर्षि अगस्त्य मुनि जी।  (*13 श्री हर्षबर्धन जी(*14महर्षि कपिल्म जी(15*श्री रावन जी (*16मुनि भुर्गु जी(*17 पाणीनी जी(*18 कल्हण जी।(*19 कालिदास जी (*20 श्री श्रेष्ठ वेदव्यासः जी            (*21 विश्वामित्र जी  (*22 श्री लोमहर्ष जी(*23 उग्रश्रवा जी  (*24 श्री महर्षि मतंग जी,श्री कशयप जी,बुद्धा जी, गोरक्षनाथ जी ,स्वामीविवेकानन्द जी,वैसे तो बहुत महान पुरुष हुए है जो प्रमुख्ये है,इनकी जितनी प्रशंशा की जाये उतनी कम है। 
ज्यादा जानकारी के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक से पढ़ सकते हो नमस्कार दन्यवाद।https://www.hamaarijeet.com/blog/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A5%80/                                           

Tuesday 10 March 2020

भास्कराचार्य या भास्कर द्वितीय का इतिहास।

  ग्रेगोरियन कैलेंडर को  1582ईसवी में लगभग देशो ने इस्तेमाल मैं लाया गया परन्तु भारत देश के विक्रम सम्मत को तो 1150ई,के समय में ही लाया गया था जोआज तक प्रयोग मैं  लाया जाता है,जो बिल्कुल सही व सटीक है ,   प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं होती।  फिर भी भारत को इसका श्रेय क्यों नहीं जाता?    जिन को विश्वास नहीं होता वह भास्कर चार्य जी के शिरोमणि सिद्धांत को पढ़िए।                                                                   
                                          
भास्कराचार्य या भास्कर द्वितीय (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावतीबीजगणितग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणितबीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था। भास्कराचार्य ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’। उन्होने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। कथित रूप से यह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है।
भास्कराचार्य के जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती है। कुछ–कुछ जानकारी उनके श्लोकों से मिलती हैं। निम्नलिखित श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य का जन्म विज्जडविड नामक गाँव में हुआ था जो सहयाद्रि पहाड़ियों में स्थित है।
आसीत सह्यकुलाचलाश्रितपुरे त्रैविद्यविद्वज्जने।
नाना जज्जनधाम्नि विज्जडविडे शाण्डिल्यगोत्रोद्विजः॥
श्रौतस्मार्तविचारसारचतुरो निःशेषविद्यानिधि।
साधुर्नामवधिर्महेश्‍वरकृती दैवज्ञचूडामणि॥ (गोलाध्याये प्रश्नाध्याय, श्लोक ६१)
इस श्लोक के अनुसार भास्कराचार्य शांडिल्य गोत्र के थे और सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान के निवासी थे। लेकिन विद्वान इस विज्जलविड ग्राम की भौगोलिक स्थिति का प्रामाणिक निर्धारण नहीं कर पाए हैं। डॉ. भाऊ दाजी (१८२२-१८७४ ई.) ने महाराष्ट्र के चालीसगाँव से लगभग १६ किलोमीटर दूर पाटण गाँव के एक मंदिर में एक शिलालेख की खोज की थी। इस शिलालेख के अनुसार भास्कराचार्य के पिता का नाम महेश्वर था और उन्हीं से उन्होंने गणित, ज्योतिष, वेद, काव्य, व्याकरण आदि की शिक्षा प्राप्त की थी।
गोलाध्याय के प्रश्नाध्याय, श्लोक ५८ में भास्कराचार्य लिखते हैं :
रसगुणपूर्णमही समशकनृपसमयेऽभवन्मोत्पत्तिः।
रसगुणवर्षेण मया सिद्धान्तशिरोमणि रचितः॥
(अर्थ : शक संवत १०३६ में मेरा जन्म हुआ और छत्तीस वर्ष की आयु में मैंने सिद्धान्तशिरोमणि की रचना की।)
अतः उपरोक्त श्लोक से स्पष्ट है कि भास्कराचार्य का जन्म शक – संवत १०३६, अर्थात ईस्वी संख्या १११४ में हुआ था और उन्होंने ३६ वर्ष की आयु में शक संवत १०७२, अर्थात ईस्वी संख्या ११५० में लीलावती की रचना की थी।
भास्कराचार्य के देहान्त के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती। उन्होंने अपने ग्रंथ करण-कुतूहल की रचना ६९ वर्ष की आयु में ११८३ ई. में की थी। इससे स्पष्ट है कि भास्कराचार्य को लम्बी आयु मिली थी। उन्होंने गोलाध्याय में ऋतुओं का सरस वर्णन किया है जिससे पता चलता है कि वे गणितज्ञ के साथ–साथ एक उच्च कोटि के कवि भी थे। अतः बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न ऐसे महान गणितज्ञ के संबंध में अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि गणित एवं खगोलशास्त्र पर उनका योगदान अतुलनीय है। प्राचीन वैज्ञानिक परंपरा को आगे बढ़ाने वाले गणितज्ञ भास्कराचार्य के नाम से भारत ने 7 जून 1979 को छोड़े उपग्रह का नाम भास्कर-1 तथा 20 नवम्बर 1981 को छोड़े प्रथम और द्वितीय उपग्रह का नाम भास्कर-2 रखा

Sunday 8 March 2020

सम्पूर्ण जय हनुमान चालीसा।

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
( दिव्य गुरु के कमल जैसे पाद के धूल को स्पर्श कर मैं मेरे आईना जैसे मन को स्वच्छ करता हूँ ।
और भगवान राम की महिमा के गुण गाता हूँ ॥ )
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
( मैं अपनी अविद्या को स्वीकार करते हुए आपको याद करता हूँ श्री हनुमान ।
कृपया मुझे शक्ति, विद्या और ज्ञान दें और मुझे रोगों और चोटों से राहत दें ॥ )
॥चौपाई॥
     जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा
महाबीर बिक्रम बजरंगी

कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुण्डल कुँचित केसा
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेउ साजे
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जग वंदन
बिद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचन्द्र के काज सँवारे
लाय सजीवन लखन जियाये
श्री रघुबीर हरषि उर लाये
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना
लंकेश्वर भए सब जग जाना
जुग सहस्र जोजन पर भानु
लील्यो ताहि मधुर फल जानू
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते
राम दुआरे तुम रखवारे
होत न आज्ञा बिनु पैसारे
सब सुख लहै तुम्हारी सरना
तुम रच्छक काहू को डर ना
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तें काँपै
भूत पिसाच निकट नहिं आवै
महाबीर जब नाम सुनावै
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरन्तर हनुमत बीरा
संकट तें हनुमान छुड़ावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै
सब पर राम तपस्वी राजा
तिन के काज सकल तुम साजा
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा
साधु सन्त के तुम रखवारे
असुर निकन्दन राम दुलारे
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता
राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा
तुह्मरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै
अन्त काल रघुबर पुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई
और देवता चित्त न धरई
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा
जय जय जय हनुमान गोसाईं
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं
जो सत बार पाठ कर कोई
छूटहि बन्दि महा सुख होई
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा
होय सिद्धि साखी गौरीसा
तुलसीदास सदा हरि चेरा
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा
                                                          पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।            

Friday 10 January 2020

गुरु गोरखनाथ का भजन sune Niche...Singer by Ankur Gautam

https://youtu.be/xxMWF03BprI

भगत पंडित रमेश शर्मा जी....
Jai BABA Dhune Wale Ki Jai Ho(Alewa.jind)
                        Bagat name ....BALBIR SASTRI
                       OR ....PANDIT....DEEPCHAND SASTRI( SON)SHREE RAMESH SHARMA
GURU NAME....SHREE PITRAM NATH JI MAHARAJ🌹Shree Ramesh Sharma🌷🌷🌼🌼🌻🌻🌺🌺🌹🌹🥀🥀🏵💐🌳🦖🕊🐒🐕🐘

Wednesday 8 January 2020